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हिमाचल के बैजनाथ में नहीं मनाया जाता दशहरा, यहां रावण को लेकर है अद्भुत मान्यता

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हिमाचल के बैजनाथ में नहीं मनाया जाता दशहरा, यहां रावण को लेकर है अद्भुत मान्यता

पोल खोल न्यूज डेस्क । हमीरपुर

हिमाचल प्रदेश अपनी संस्कृति और परंपराओं के लिए जाना जाता है। यहां का हर त्योहार धार्मिक आस्था और लोककथाओं से जुड़ा होता है। मगर आश्चर्य की बात यह है कि प्रदेश का एक कस्बा बैजनाथ ऐसा भी है जहां दशहरा उत्सव नहीं मनाया जाता। कारण भी उतना ही अद्भुत है—यहां के लोग रावण को बुराई का प्रतीक नहीं मानते, बल्कि उसे विद्वान और भगवान शिव का परम भक्त मानकर उसका सम्मान करते हैं।

स्थानीय मान्यता के अनुसार, इस क्षेत्र में रावण का अपमान करना अशुभ माना जाता है। यही वजह है कि दशहरे पर यहां रावण दहन नहीं होता, न ही उसकी प्रतिमा बनाई जाती है। बल्कि लोग इस दिन साधारण पूजा-अर्चना कर भगवान शिव का स्मरण करते हैं। बुजुर्गों का कहना है कि पीढ़ियों से चली आ रही इस परंपरा को आज भी पूरी निष्ठा के साथ निभाया जा रहा है।

जहां पूरे देश में विजयादशमी बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाई जाती है, वहीं हिमाचल का यह शहर रावण को ‘महान पंडित’ और ‘शिव भक्त’ मानकर अलग ही परंपरा का निर्वहन करता है। यह मान्यता न केवल स्थानीय संस्कृति को अनोखा आयाम देती है, बल्कि इस बात का प्रमाण भी है कि धार्मिक ग्रंथों और पात्रों की व्याख्या अलग-अलग रूपों में की जाती रही है।

बैजनाथ कस्बा (जिला कांगड़ा) एक अनोखी परंपरा का निर्वहन आज भी करता है। पूरे देश में जहां विजयादशमी पर रावण दहन होता है, वहीं बैजनाथ में दशहरा नहीं मनाया जाता। वजह है—यहां रावण को लेकर प्रचलित मान्यता।

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स्थानीय कथा के अनुसार, लंका नरेश रावण भगवान शिव का परम भक्त था और उसने शिव को प्रसन्न करने के लिए बैजनाथ मंदिर में घोर तपस्या की थी। रावण ने यहां शिवलिंग स्थापित कर भगवान शिव से वरदान प्राप्त किया था। इसी कारण बैजनाथ के लोग रावण को केवल बुराई का प्रतीक मानने के बजाय उसे विद्वान, पंडित और शिवभक्त के रूप में देखते हैं। परंपरा के अनुसार, यहां दशहरे पर रावण की प्रतिमा जलाना अशुभ माना जाता है।

 

बैजनाथ के बुजुर्ग बताते हैं कि पीढ़ियों से यह परंपरा निभाई जा रही है और आज भी कस्बे में दशहरा उत्सव का आयोजन नहीं होता। स्थानीय लोग इस दिन विशेष रूप से भगवान शिव की पूजा-अर्चना करते हैं।

जहां पूरे देश में विजयादशमी अच्छाई की बुराई पर विजय का पर्व माना जाता है, वहीं बैजनाथ की यह अनोखी परंपरा धार्मिक विविधता और मान्यताओं की गहराई को दर्शाती है। यह परंपरा न केवल हिमाचल की सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध बनाती है बल्कि इस तथ्य को भी उजागर करती है कि एक ही पात्र को अलग-अलग दृष्टिकोण से देखने की परंपरा भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता है।

 

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