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टौणी देवी : पत्थर टकराने से पूरी होती है हर मुराद, नवरात्रि में माता टौणी देवी मंदिर में श्रद्धालुओं का लगता है तांता

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टौणी देवी : पत्थर टकराने से पूरी होती है हर मुराद, नवरात्रि में माता टौणी देवी मंदिर में श्रद्धालुओं का लगता है तांता

पोल खोल न्यूज़ डेस्क | टौणी देवी/ हमीरपुर

इन दिनों शक्ति की देवी मां दुर्गा के उपासना का महापर्व नवरात्रि को लेकर देश भर में श्रद्धालुओं में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है। मंदिर माता के जयकारे से गुंजायमान है। हमीरपुर जिले में भी माता के मंदिरों में श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है। हमीरपुर जिले में स्थित माता टौणी देवी का मंदिर लगभग 350 वर्ष पुराना है और चौहान वंश की कुलदेवी के रूप में पूजनीय हैं। नवरात्रि में माता के दर्शन के लिए यहां दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं मान्यता है कि मनोकामना पूर्ति श्रद्धालु मंदिर में पत्थर टकराते हैं।

बताया जाता है कि मनोकामना पूर्ति के लिए इस मंदिर में पत्थरों को आपस में टकराकर माता का आह्वान किया जाता है। नवरात्रि के दौरान भी सुबह से शाम तक मंदिर में माथा टेकने के लिए दूर-दूर तक श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। माता टौणी देवी को सुनाई नहीं देता था। इसलिए जब भी कोई मन्नत मांगता है तो वहां रखे पत्थरों को आपस में टकराता है और उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है। आज भी भक्त मंदिर परिसर में पिंडी के पास रखे हुए दो पत्थरों को पिंडी से टकराते हैं और मन्नत मांगते हैं। मुगल साम्राज्य के समय में कुछ चौहान वंश के लोग धर्मांतरण से बचने के लिए राजस्थान से आकर इस दुर्गम क्षेत्र में छिपे थे। उन्होंने माता को यहां पर शरण दी थी, जिसकी याद में मंदिर की स्थापना की गई।

पत्थर टकराने से पूरी होती है मनोकामना

नवरात्रि के पावन अवसर माता मंदिर दर्शन करने और टौणी देवी में माथा टेकने दूर दूर से श्रद्धालु आते हैं। आस्था है कि यहां पर तीन बार पत्थरों को टकराना पड़ता है। इसके बाद माता भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती हैं।

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कुलदेवी माता टौणी देवी मंदिर

श्रद्धालुओं का कहना है कि यह मंदिर करीब 400 साल पुराना है। यहां पर सभी माथा टेकने आते हैं। माता सबकी मनोकामना पूर्ण करती हैं। यहां पर अन्य राज्य से भी श्रद्धालु टौणी देवी माता मंदिर में पहुंचते हैं और माथा टेकते हैं। पत्थर टकराने से लोगों की मन्नत पूरी होती है और यहां पर लोगों की बहुत ही ज्यादा आस्था है।

यहां पर चंडीगढ़, हरियाणा, दिल्ली और राजस्थान समेत अन्य राज्यों से हमारे इस मंदिर में पहुंचते हैं। इस मंदिर की बहुत मान्यता है। चौहान वंश में जब बड़े बेटे की शादी होती है तो पहले माता मंदिर में आकर माता का आशीर्वाद लिया जाता है। मंदिर परिसर में पौड़ियों के पास पत्थर रखा गया है, इसे माता का स्वरूप माना गया है। यहां पर पत्थर टकराकर मन्नत जो भी मन्नत मांगते हैं वह पूरी हो जाती है। कुछ वर्ष पहले इस मंदिर को भव्य स्वरूप दिया गया है। यहां पर हर साल लगभग 40 से 50 शादियां बुक करवाई जाती हैं।

वैसे तो साल भर मंदिर में भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। वहीं, नवरात्रि के पावन अवसर पर पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान अन्य राज्यों से भी लोग यहां पर आते हैं। माता के आगे अपनी मन्नत रखते हैं, जिसे माता पूर्ण करती हैं। “कुलदेवी टौणी देवी चौहान वंश की कुलदेवी हैं और चौहान वंश से कोई भी शुभ कार्य करता है तो पहले माता का आशीर्वाद आकर लेता है। टौणी देवी बाजार माता के नाम पर ही बसाया गया है। यहां पर एक मेला भी टौणी देवी माता मंदिर के नाम से आयोजित किया जाता है।

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चौहान वंश से दिल्ली से यहां आए थे 12 भाई

कुलदेवी टौणी देवी जी मंदिर लगभग 400 साल पुराना है। यहां पर चौहान वंश से 12 भाई दिल्ली से आए थे और यहां पर उनकी एक बहन थी, जिसने यहां पर समाधि ले ली थी। 12 भाई और 12 गांव के लोग यहां पर पूजा-अर्चना करते थे। यहां की पचीली उषा कुमारी हैं, इससे पहले उनके माता-पिता और दादा-दादी यहां पर इस कार्य को करते थे। लगभग 80 साल पहले यहां पर एक छोटा सा मंदिर पहाड़ी पर होता था। बाद में इसे भव्य स्वरूप दिया गया।

कहां है टौणी देवी माता मंदिर?

माता टौणी देवी को सुनाई नहीं देता है, इसलिए श्रद्धालु अपनी मन्नत मांगने के लिए पत्थरों को आपस में टकराकर माता का ध्यान आकर्षित करते हैं। यह मंदिर चौहान वंश की कुलदेवी के रूप में पूजनीय है। इस वंश के लोग अपनी कुलदेवी के दर्शन करने के लिए दूर-दूर से आते हैं। चौहान वंश की कुलदेवी माता टौणी देवी का मंदिर हमीरपुर से मंडी वाया अवाहदेवी नेशनल हाईवे-03 पर हमीरपुर से 14 किलोमीटर की दूरी पर टौणी देवी कस्बे में स्थित है। इस क्षेत्र के चौहान वंश के साथ-साथ हरियाणा, पंजाब और हिमाचल के विभिन्न स्थानों के लोग यहां कुलदेवी को मनाने के लिए हर वर्ष आते हैं। चौहान वंश के लोग किसी भी शादी-समारोह के शुरू होने से पहले मंदिर में माता को प्रसाद चढ़ाते हैं।

माता का आशीर्वाद लेने के बाद शुभ कार्य

मां का आशीर्वाद लेने के बाद ही हर कार्य शुरू होता है। हर वर्ष आषाढ़ मास के दस प्रविष्ट के दिन यहां पर विशाल मेले का आयोजन होता है। क्षेत्र के लोग अपनी कुलदेवी को फसल का चढ़ावा चढ़ाने आते हैं। माता के दर पर सच्चे मन से की गई हर फरियाद हमेशा पूर्ण होती है। इसी आस्था के चलते मंदिर में हर दिन श्रद्धालु आते हैं। आज यहां पर भोलेनाथ, हनुमान जी, शनिदेव महाराज, बाबा बालकनाथ जी, श्री साई की मूर्ति स्थापित है. स्थानीय लोगों की इस मंदिर में गहरी आस्था है।

 

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