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हिमाचल की सियासत में नई ‘कंधा-संस्कृति’—नेता अब जनता के कंधों पर ही खोज रहे सहारा!

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हिमाचल की सियासत में नई ‘कंधा-संस्कृति’—नेता अब जनता के कंधों पर ही खोज रहे सहारा!

रजनीश शर्मा। हमीरपुर

हिमाचल प्रदेश की राजनीति में इन दिनों एक नई और रोचक परम्परा जन्म लेती दिखाई दे रही है। कभी जनता नेताओं से उम्मीदें लेकर उनके पीछे चलती थी, लेकिन अब हालात ऐसे बन गए हैं कि नेता खुद जनता और समर्थकों के कंधों पर सवार होते नज़र आ रहे हैं। राजनीति का यह बदला हुआ दृश्य प्रदेश की सियासत में चर्चा का विषय बना हुआ है।

पहले जीत के मौकों पर केवल विजय रैलियों में विजयी उम्मीदवारों को कंधों पर उठाया जाता था, लेकिन अब यह ‘कंधा-संस्कृति’ रोज़मर्रा की सियासी गतिविधियों में शामिल होती जा रही है। खासकर हमीरपुर जिले में तो मानो नेताओं को कंधों पर उठाने का एक नया ट्रेंड, एक अघोषित मुकाबला शुरू हो चुका है। समर्थक जब चाहें अपने प्रिय नेता को कंधे पर उठा लेते हैं और नेता भी इस सवारी का साफ तौर पर आनंद लेते दिख रहे हैं।

जनता का भी अंदाज़ कुछ बदला-बदला है। आज किसी एक नेता को कंधे पर बैठा रही है, तो कल किसी दूसरे नेता को। यह अद्भुत दृश्य शायद सिर्फ भारतीय लोकतंत्र में ही संभव है—जहाँ कुर्सियों की राजनीति के साथ-साथ कंधों की राजनीति भी तेजी से विकसित हो रही है।

विशेषज्ञों का कहना है कि 2027 के चुनाव आते-आते न जाने कितने नेता जनता के कंधों पर सवारी करते नजर आएँगे। आश्चर्य इस बात का भी है कि न जनता को इस नई परम्परा से कोई आपत्ति है, न नेताओं को। बल्कि दोनों पक्ष इस नए राजनीतिक ‘उत्थान’ का भरपूर आनंद लेते दिख रहे हैं।

अमेरिका, ब्रिटेन और चीन जैसे विकसित देशों की राजनीति में ऐसे दृश्य देखने को शायद ही मिलें, लेकिन हिमाचल प्रदेश में यह ट्रेंड तेजी से पैर पसार रहा है। फिलहाल यह ‘कंधा-संस्कृति’ प्रदेश की सियासत में नई चर्चा और नए व्यंग्य का विषय बन चुकी है।

 

 

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