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अगर राम से जुड़ी है दिवाली की परंपरा, तो क्यों करते हैं फिर लक्ष्मी-गणेश की पूजा? जानें

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अगर राम से जुड़ी है दिवाली की परंपरा, तो क्यों करते हैं फिर लक्ष्मी-गणेश की पूजा? जानें

पोल खोल न्यूज़ डेस्क | हमीरपुर

देशभर में दिवाली का त्योहार सोमवार यानि 20 अक्टूबर को मनाया जाएगा। वहीं, दिवाली के दिन लोग घरों में भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करते हैं। हर साल कार्तिक मास की अमावस्या को दिवाली का त्योहार मनाया जाता है, लेकिन अगर श्रीराम के अयोध्या लौटने पर दिवाली मनाई जाती है तो फिर इस दिन लक्ष्मी-गणेश की पूजा क्यों होती है। इसके पीछे भी एक बहुत बड़ा कारण छुपा हुआ हैं।

बता दें कि दिवाली मनाने की कहानी भगवान राम से जुड़ी है, लेकिन दिवाली पर माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा का विधान क्यों है और हिंदू शास्त्र इसको लेकर क्या कहते हैं। हिंदू शास्त्रों के अनुसार कार्तिक मास की अमावस्या को लक्ष्मी पूजा का विधान है। इसकी मान्यता भगवान विष्णु के राम अवतार से भी पहले की है। भगवान विष्णु ने 7वें अवतार के रूप में राम अवतार के रूप में जन्म लिया था, लेकिन लक्ष्मी पूजन की कहानी उससे भी एक युग पहले अर्थात सतयुग की है।

सतयुग में सुर-असुर संग्राम के बाद समुद्र मंथन हुआ था, जिसमें अमृत, विष, ऐरावत हाथी, कामधेनु गाय समेत 14 रत्न निकले थे। इनमें महालक्ष्मी भी एक थीं, जिनका देवी-देवताओं ने स्वागत किया था, जिसके बाद कार्तिक मास की अमावस्या के दिन ही माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु का विवाह हुआ था। मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन से ही धन्वंतरि निकले थे और वो अंत में अमृत कलश लेकर बाहर निकले थे। धन्वंतरि की पूजा धनतेरस पर की जाती है।

क्यों होती है गणेश जी की पूजा

दिवाली पर लक्ष्मी पूजन की मान्यता के बारे में तो सबको जानकारी है, लेकिन दिवाली पर माता लक्ष्मी के साथ गणेश जी की पूजा क्यों की जाती है। वैसे तो भगवान गणेश की पूजा हिंदू धर्म में हर शुभ काम से पहले की जाती है, लेकिन दिवाली के दिन लक्ष्मी के साथ गणेश पूजन की एक और वजह है। माता लक्ष्मी का जन्म समुद्र मंथन के दौरान जल से हुआ और जल का स्वभाव निरंतर बहते रहना है। यही लक्ष्मी का भी स्वभाव है। कहते भी हैं कि लक्ष्मी एक स्थान पर नहीं रहती, उनका कोई स्थाई वास नहीं है। वहीं, दूसरी ओर भगवान गणेश बुद्धि के स्वामी हैं। लक्ष्मी को संभालने के लिए बुद्धि की आवश्यकता होती है और बुद्धिमान के पास ही लक्ष्मी हमेशा स्थिर रहती है, इसलिए लक्ष्मी को स्थिर रखने के लिए ही भगवान गणेश की पूजा उनके साथ की जाती है।

हिंदू शास्त्रों के मुताबिक समुद्र मंथन सतयुग की घटना है, जबकि भगवान श्री राम का लंका पर विजय पाकर अयोध्या लौटना त्रेता युग की घटना है। संयोगवश ये दोनों घटनाएं कार्तिक मास की अमावस्या को ही घटी थीं। इसलिए कार्तिक मास की अमावस्या पर दिवाली में माता लक्ष्मी और गणेश का पूजन करने का विधान है। अयोध्या के लोगों ने इस शुभ अवसर पर दीप जलाकर उनका स्वागत किया था।

 

 

 

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