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Kullu : ब्यास की जलधारा को नहीं लांघते पांच देवता, आज भी किया जा रहा सदियों पुरानी परंपरा का निर्वहन

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Kullu : ब्यास की जलधारा को नहीं लांघते पांच देवता, आज भी किया जा रहा सदियों पुरानी परंपरा का निर्वहन

पोल खोल न्यूज़ | कुल्लू

दशहरा में आने वाले देवी-देवताओं का अलग-अलग इतिहास है। कई देवताओं की अपनी मान्यताएं हैं जिनका आज भी देवता बखूबी निर्वहन कर रहे हैं। ऐसी ही एक परंपरा पांच देवताओं से जुड़ी है। इनका निर्वहन देवता आज भी कर रहे हैं। दशहरा में शामिल होने के लिए मलाणा के देवता ऋषि जमूल, जाणा के जीवनारायण, सौर के सरवल नाग, तांदला के शुकली नाग और सोयल के देवता आजीमल अपने घंटी-धडछ के साथ आते हैं। देवता खराहल के डोभी में अस्थायी शिविर में डेरा जमाएंगे।

बता दें कि देवता ब्यास नदी की जलधारा को नहीं लांघते हैं। सदियों से पांचों देवता देव महाकुंभ दशहरा में ब्यास नदी पार से ही भगवान रघुनाथ का अभिनंदन करते है। देवता के कारकूनों का कहना है कि देवताओं के अपने नियम होते हैं। इनका श्रद्धा के साथ पालन देवलू और हारियान कर रहे हैं। भगवान रघुनाथ की रथयात्रा से लेकर लंका दहन तक इन देवता की हर रोज पूजा-अर्चना होती है। यहीं दशहरा की तमाम देव परंपराओं को देव विधि विधान के अनुसार पूरा किया जाता है।

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दशहरा के अंतिम दिन लंका दहन के बाद यह सभी देवता अपने देवालय लौट जाते हैं। देवता शुकली नाग के पुजारी टिकम राम बताते हैं कि सदियों पुराने नियम के मुताबिक देवता ब्यास नदी पार नहीं करते हैं। देवता ब्यास पार से ही दशहरा में शामिल होते हैं। दशहरा उत्सव समिति के अध्यक्ष सुंदर सिंह ठाकुर ने कहा कि सरकारी नियम के अनुसार इन सभी देवताओं को नजराना दिया जाता है। दशहरा में ब्यास नदी पार भी देवधुन सभी को सकारात्मक उर्जा प्रदान करती है।

 

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