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अवैध खनन हिमाचल में आपदा का बड़ा कारण, दो साल में अवैध खनन के 23,429 मामले दर्ज

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अवैध खनन हिमाचल में आपदा का बड़ा कारण, दो साल में अवैध खनन के 23,429 मामले दर्ज

पोल खोल न्यूज़ | शिमला

हिमाचल प्रदेश में आपदा से तबाही का खनन भी बड़ा कारण है। हिमाचल प्रदेश में कई वर्षों से अवैज्ञानिक तरीके और अवैध खनन से हिमाचल के नदी-नालों और खड्डों को खोखला किया जा रहा है। इससे नदी-नाले रास्ते बदल रहे हैं, जो बरसात में तबाही का कारण बन रहे हैं। सतलुज, ब्यास, यमुना, चिनाब बेसिन के अलावा कई नदी-नालों में बड़े पैमाने पर अवैध के मामले सामने आए हैं। आईआईटी पुणे की रिसर्च रिपोर्ट में भी हिमाचल में अवैज्ञानिक खनन को आपदा में भारी नुकसान के लिए जिम्मेदार माना गया है। आपदा के कारणों का अध्ययन करने हिमाचल पहुंची केंद्रीय टीम ने भी अवैज्ञानिक तरीके से खनन को आपदा में भारी नुकसान का एक कारण माना है।

बता दें कि विधानसभा से लेकर जिला परिषद की बैठकों में वर्षों से अवैध खनन का मुद्दा उठता रहा है, लेकिन स्थिति जस की तस है। कई राजनेताओं पर भी खनन माफिया को संरक्षण के आरोप लगते रहे हैं। नालागढ़, बद्दी और ऊना जैसे इलाकों में खनन माफिया की ओर से हमले करने के भी कई मामले सामने आ चुके हैं। राज्य में वैज्ञानिक तरीके से खनन, पर्यावरण सुरक्षा और खनिज संपदा के संरक्षण के लिए खनिज नीति 2024 अधिसूचित है। नीति के तहत यदि अवैध खनन से सरकारी संपत्तियों को नुकसान होता है, तो संबंधित विभाग दोषियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करेगा। वहीं, बीते दिनों प्रदेश की विधानसभा में फतेहपुर के विधायक भवानी सिंह पठानिया ने मामला उठाया कि पंजाब के खनन माफिया ने तो शाहनहर के बैराज को भी नुकसान पहुंचाया है। यह बैराज अचानक टूट गया तो बाढ़ से आसपास रह रहे कई लोगों की लाशें पाकिस्तान पहुंच जाएंगी। नालागढ़ की महादेव खड्ड में भी माफिया अवैध खनन कर रहा है। नयना देवी विधानसभा हलके के अंतर्गत जंडौरी, नीलां, पलसेट, दबट, कट्टेबाल, लैहड़ी, दोलां और कदीनी जैसे क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर अवैध खनन की शिकायतें हैं।

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सरकारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले दो साल में प्रदेशभर में अवैध खनन के 23,429 मामले दर्ज किए गए हैं। इनमें करीब 15 करोड़ का जुर्माना वसूला गया। उद्योग विभाग ने पिछले 4 महीनों में संवेदनशील क्षेत्रों में 900 निरीक्षण किए। इनमें 895 अवैध खनन के मामलों में 44.31 लाख रुपये का जुर्माना ठोंका गया। ऐसे कितने ही और मामले हैं, जिन पर किसी का कोई ध्यान नहीं है।

वहीं, पर्यावरणविद् कुलभूषण उपमन्यु ने बताया कि अवैध खनन से जमीन के अंदर का पानी सूख रहा है। नदी-नालों में खनन के लिए सड़कें बना दी गई हैं। यह खनन अवैध और अवैज्ञानिक तरीके से हो रहा है। खनन के लिए मशीनरियों का इस्तेमाल करना गलत है। नदियों से रेत और बजरी निकालने के लिए घोड़ा मालिकों को लाइसेंस दिए जाने चाहिएं। इससे बेरोजगारों को रोजगार के अवसर भी मिलेंगे। मशीनरियों से नालों-खड्डों से रेत-बजरी निकलने से जमीन का कटाव हो रहा है। इससे बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो रही है।

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डॉ. मनमोहन सिंह लोक प्रशासन संस्थान शिमला में आपदा प्रबंधन सेल के सहायक प्रोफेसर डॉ. ख्याल चंद का कहना है कि हिमालयी नदियों और सड़कों के किनारों पर हो रहा अवैध खनन बाढ़ और भूस्खलन के खतरे को कई गुना बढ़ा रहा है। कड़े नियामक प्रवर्तन के साथ स्थानीय समुदायों की भागीदारी बहुत जरूरी है। इससे खनन पर निगरानी रखी जा सकती है। वैज्ञानिक आकलन और नागरिक रिपोर्टिंग को जोड़ने से पर्यावरणीय मानकों का पालन सुनिश्चित होगा। इससे नदी-नालों का प्राकृतिक संतुलन बना रहेगा।

वहीं, हिमाचल प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना ने बताया कि हिमाचल प्रदेश में आपदा के लिए कई कारण जिम्मेदार हैं। क्यों बादल फट रहे हैं, क्यों भूस्खलन की घटनाएं बढ़ गई हैं। इसके कारणों पर उच्च स्तरीय टीम अध्ययन कर रही है। जलवायु परिवर्तन, अवैज्ञानिक तरीके से खनन आदि कई कारण इसके लिए जिम्मेवार रहे हैं। ऐसे तमाम कारणों पर विस्तृत स्टडी होगी। दूसरी बार टीम शिमला आ रही है।

 

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